Wednesday, September 15, 2010

वोह लम्हा कभी न गुज़रा...

वोह लम्हा कभी न गुज़रा पर न जाने वक़्त कहाँ गुज़र गया...
वोह दिन कभी न गुज़रा पर न जाने साल कहाँ गुज़र गया...
वोह बसंत कभी न गुज़रा पर न जाने मौसम कहाँ गुज़र गया...
हम उनसे मोहबत्तें-ए-वफ़ा का अंजाम पूछते रहे
और न जाने उनके हसीं जवाबों से सारा उमर कहाँ गुज़र गया ...
-साहिल 

No comments:

Post a Comment