Thursday, December 30, 2010

यकीं नहीं होता!

लौट आये उन राहों से, यकीं नहीं होता,
यादें ऐसी है, सिलसिला ख़त्म नहीं होता
पलट कर देखा, बीते लम्हों के पन्नो पर
जितनी देर भी रहा, लम्हा ख़त्म नहीं होता

जीता हूँ उन लम्हों को बार बार
कैद हूँ मैं अब उन राहों में,
भटक जायेगा साहिल, ये यकीं नहीं होता

- साहिल 

Friday, December 3, 2010

मृग तृष्णा की मुझे तलाश है!

दूर हो कर भी करीब हो मेरे,
कैसा ये एहसास है.
बारिश में भी प्यासा हूँ
कैसी मेरी प्यास है!

तुम खुशबू बन उड़ जाओगी
मैं कुछ भी न कर पाउँगा
हाथ फैला कर छु लू तुम्हे
अब बस इतनी सी आस है

हूँ हकीकत से रु-ब-रु मैं
अब बस वोह लम्हे मेरे पास है
जाने किस सोच मे डूबा हूँ मैं
मृग तृष्णा की शायद मुझे तलाश है!

- साहिल