Friday, September 13, 2013

यथार्थता..



दिखाई दे जो साफ़ वो छलावा भी हो सकता है
प्यार के दो बोल एक भुलावा भी हो सकता है
हँसता चेहरा आप का एक दिखावा भी हो सकता है
जान कर भी सब अगर सवाल करे कोई
उन सवालों का जवाब एक सवाल भी हो सकता है

- साहिल 

Thursday, August 15, 2013

क्या मैं आज़ाद हूँ?



क्या मैं आज़ाद हूँ, कही विप्लव तो कही फसाद हूँ
बँट रहा हर साल हूँ, कही प्रत्यय तो कही अविश्वास हूँ
लोग कुछ यूं हैरान है, कही अधोमूख तो कही अपार हूँ
क्या मैं इक सामान हूँ, कही अहम तो कही बेकार हूँ

क्या आज मैं आज़ाद हूँ, पूछे कोई तो बस चुप-चाप हूँ
कैद किसके हाथ हूँ, जान कर भी मैं क्यों अनजान हूँ
बन गया इक सवाल हूँ, जवाब जिसका मिथ्याभास हूँ
खो कर हर पल खुदी को, हो रहा मैं अब आज़ाद हूँ

- साहिल 

Wednesday, February 13, 2013

न समझ पाया जो ढाई आखर को...



प्यार की कोई छोर नहीं
बांध पाए ऐसी कोई डोर नहीं
मिल ही जाते है प्यार करने वाले
किस्मत पर किसी का यूँ जोर नहीं

समझ जाती है दुनिया सारी
स्नेह की ऐसी कोई बोल नहीं
न समझ पाया जो ढाई आखर को
जीवन में उस के समझो हुई भोर नहीं

हर तरफ प्यार यूँ है समाया
क्यूँ देखा नहीं आँखें खोल कभी
जख्म है तो वोह भी भर जायेगा
प्यार के मरहम का कोई तोड़ नहीं

- साहिल 

Wednesday, October 24, 2012

कहाँ मेरा राम है?



तीर से न तलवार से,
मरेगा न ये वार से,
कोई खोजो राम को,
खो गया जो जान के

बदल रहे कुछ लोग है,
रावण बनते हर रोज वे
कहाँ मेरा राम है?
जान कर जो अनजान है

बदला रावण हर युग में
बदल न पाया राम रे
आज चेहरे कई है रावण के
और एक बेचारा मेरा राम रे

कैसे किसका मैं वध करू
वोह भी यूँ कुछ हैरान है
सीता की इज्ज़त दावं पर नहीं
शायद वोह भी इसलिए शांत है

- साहिल 

Saturday, October 13, 2012

क्यों?



समंदर की उन लहरों को देखा
क्यों थकते नहीं वोह टूट कर भी
घड़ी की उन सुइयों को देखा
बिछड़ जाते है जो पल भर मिल कर भी
कर्म कहे या बदकिस्मती इनकी
क्यों जीतते नहीं ये जीत कर भी

आज हमने हमारी दूरियों को देखा
क्यों मनाते नहीं हम रूठ कर भी
कैसा है ये साथ हमारा तुम्हारा
क्यों बिखरे हुए है हर हम जुड़ कर भी
वक़्त को कोसे या किस्मत को अपनी
क्यों मिलते नहीं हम मिल कर भी..

- साहिल 

Wednesday, September 19, 2012

गणपति बाप्पा जो आये है!



भोले के पुत्र, पार्वती के लल्ला
मुसे में बिराजे आये है
जो हर यज्ञ में पूजे जाते हो पहिला
वो समृधि के बटैया आये है
जो विघ्न हर, करते सब का भला
वो पांडित्य का पिटारा लाये है
होगा अब हर मोहल्ले हल्ला
गणपति बाप्पा जो आये है!

- साहिल 

Saturday, September 15, 2012

मिली न जो मंजिल...



मिली न जो मंजिल तो किस्मत को कोस दिया
जहाँ कश्ती डूबी वहाँ समंदर को दोष दिया
क्यों नहीं चलते लोग हर पल संभलकर
जब भी ठोकर लगी तो उस पत्थर को दोष दिया

हुई खुद से जो गलती तो औरो को दोष दिया
हर हालात को अपने वक़्त पर छोड़ दिया
क्यों नहीं चलते लोग हर वक़्त परख कर
विगति से रु-बी-रु पर ऊपर वाले को कोस दिया

जीवन बीती निर्जीव चीजों को हर पल दोष देते
न थी हिम्मत तो हवाओं का क्यों विरोध किया
नित्य कर्म से अपने बनो तुम सिकंदर
कोरे हाथों में जिसने अपनी किस्मत गोद दिया

- साहिल