मिली न जो मंजिल तो किस्मत को कोस दिया
जहाँ कश्ती डूबी वहाँ समंदर को दोष दिया
क्यों नहीं चलते लोग हर पल संभलकर
जब भी ठोकर लगी तो उस पत्थर को दोष दिया
हुई खुद से जो गलती तो औरो को दोष दिया
हर हालात को अपने वक़्त पर छोड़ दिया
क्यों नहीं चलते लोग हर वक़्त परख कर
विगति से रु-बी-रु पर ऊपर वाले को कोस दिया
जीवन बीती निर्जीव चीजों को हर पल दोष देते
न थी हिम्मत तो हवाओं का क्यों विरोध किया
नित्य कर्म से अपने बनो तुम सिकंदर
कोरे हाथों में जिसने अपनी किस्मत गोद दिया
जहाँ कश्ती डूबी वहाँ समंदर को दोष दिया
क्यों नहीं चलते लोग हर पल संभलकर
जब भी ठोकर लगी तो उस पत्थर को दोष दिया
हुई खुद से जो गलती तो औरो को दोष दिया
हर हालात को अपने वक़्त पर छोड़ दिया
क्यों नहीं चलते लोग हर वक़्त परख कर
विगति से रु-बी-रु पर ऊपर वाले को कोस दिया
जीवन बीती निर्जीव चीजों को हर पल दोष देते
न थी हिम्मत तो हवाओं का क्यों विरोध किया
नित्य कर्म से अपने बनो तुम सिकंदर
कोरे हाथों में जिसने अपनी किस्मत गोद दिया
- साहिल
babu moshay, aap toh chaa gaye.. kya baat boli hai
ReplyDeleteThanks Bandhu! :)
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