Tuesday, September 11, 2012

शबनम की एक बूँद ही पिला दे...



शबनम की एक बूँद ही पिला दे
एक अर्से से हम यूँ प्यासे है
समंदर में भी हम प्यासे रह गए
कदर उस ओस की आज हम जाने है

कोई हमारा आज मेहमान हो जाए
तन्हाई में वक़्त हम यूँ बिताये है
मेले में भी हम तनहा से रह गए
कदर उस शख्स की अब हम जाने है

हमसे भी कोई आज मशवरा कर ले
हर मोड़ पर हम यूँ ठोकर खाए है
अगर आज किसी के काम आ जायें
तो कदर हमारी भी कोई जाने है.

- साहिल 

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