समंदर की उन लहरों को देखा
क्यों थकते नहीं वोह टूट कर भी
घड़ी की उन सुइयों को देखा
बिछड़ जाते है जो पल भर मिल कर भी
कर्म कहे या बदकिस्मती इनकी
क्यों जीतते नहीं ये जीत कर भी
आज हमने हमारी दूरियों को देखा
क्यों मनाते नहीं हम रूठ कर भी
कैसा है ये साथ हमारा तुम्हारा
क्यों बिखरे हुए है हर हम जुड़ कर भी
वक़्त को कोसे या किस्मत को अपनी
क्यों मिलते नहीं हम मिल कर भी..
क्यों थकते नहीं वोह टूट कर भी
घड़ी की उन सुइयों को देखा
बिछड़ जाते है जो पल भर मिल कर भी
कर्म कहे या बदकिस्मती इनकी
क्यों जीतते नहीं ये जीत कर भी
आज हमने हमारी दूरियों को देखा
क्यों मनाते नहीं हम रूठ कर भी
कैसा है ये साथ हमारा तुम्हारा
क्यों बिखरे हुए है हर हम जुड़ कर भी
वक़्त को कोसे या किस्मत को अपनी
क्यों मिलते नहीं हम मिल कर भी..
- साहिल
Bahut Sunder...
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