Thursday, December 30, 2010

यकीं नहीं होता!

लौट आये उन राहों से, यकीं नहीं होता,
यादें ऐसी है, सिलसिला ख़त्म नहीं होता
पलट कर देखा, बीते लम्हों के पन्नो पर
जितनी देर भी रहा, लम्हा ख़त्म नहीं होता

जीता हूँ उन लम्हों को बार बार
कैद हूँ मैं अब उन राहों में,
भटक जायेगा साहिल, ये यकीं नहीं होता

- साहिल 

2 comments:

  1. nice one.. wht was the thought behind this nostalgia ?

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  2. har insaan yaadon ka gulaam hai dost... and i m not an exception :)

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