Saturday, September 11, 2010

अब के सावन!

एक किनारा था साहिल,
एक सहारा था साहिल,
एक प्यासा था साहिल,
एक आवारा था साहिल,
कल कल करती लहरों से आज भी क्यों टकराता था साहिल!
किसी का आरज़ू था साहिल,
किसी का आबरू था साहिल,
किसी का मंजिल था साहिल,
किसी का रास्ता था साहिल,
हर पल गुज़रते वक़्त का क्यों चस्म-ए-दीद गवाह था साहिल!!
साहिल से न पूछो दर्दे-ए-गम का सिला, गम के दीवारों से घीरा हुआ था साहिल!
ना कुरेदो उन ज़ख्मो को, दीवारों को हर पल तोड़ रहा था साहिल!
जल में रह कर भी प्यासा रह गया साहिल, भीग कर भी जल से जल गया था साहिल|
वक़्त मिले तो मोड़ देना उन नदियों को, अब के सावन वो छु ना पाए साहिल||

-साहिल

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