Wednesday, September 29, 2010

अल्लाह-राम!

क्या हिन्दू क्या मुसलमान
सब दाता के एक ही नाम
फर्क नहीं पड़ता उनको
जिनके मन में बसते है राम

क्या मंदिर क्या मस्जिद
फ़रियाद सबकी एक सामान
डर नहीं लगता उनको
जिनकी रूह अल्लाह के है नाम

देखो उन परिंदों को जो अपने पंख है फैलाये
जाने अनजाने हर मंदिर हर मस्जिद हो आये
मिल आये हर पंडित मौलवी
फर्क न देखा उन्होंने ऐसी बात हमे है बताये
अच्छी हमसे जात है उनकी
अल्लाह-राम एक कर आये...

-साहिल 

Thursday, September 23, 2010

गुज़र गया...





शब् से कब सहर हुई और 
वोह ख़्वाब न जाने कहाँ गुज़र गया
सहर से कब शफक हुई और
वोह रोज़ न जाने कहाँ गुज़र गया
बहार से कब खिसां हुई और 
वोह साल न जाने कहाँ गुज़र गया
शब्र की कब इन्तेहाँ हुई और
वोह करार जाने कहाँ गुज़र गया
उस दिन भी जब बात चली तेरी आखों की और जा पहुँची पैमाने तक
तेरी उल्फत ने मुझे फिर खींच लिया शहर के उस मैखाने तक..
हिज्र के पल कब बदले सालों में, समझ न पाया साहिल समझाने से 
संभलना था उसे ये मान कर, गुज़र गया साहिल हर पैमाने से..

-साहिल

Wednesday, September 15, 2010

वोह लम्हा कभी न गुज़रा...

वोह लम्हा कभी न गुज़रा पर न जाने वक़्त कहाँ गुज़र गया...
वोह दिन कभी न गुज़रा पर न जाने साल कहाँ गुज़र गया...
वोह बसंत कभी न गुज़रा पर न जाने मौसम कहाँ गुज़र गया...
हम उनसे मोहबत्तें-ए-वफ़ा का अंजाम पूछते रहे
और न जाने उनके हसीं जवाबों से सारा उमर कहाँ गुज़र गया ...
-साहिल 

Monday, September 13, 2010

शिकायत!

किस से शिकायत करे आप की
हर कोई चाहता है आप को...
सोचा खुदा से शिकायत करे आप की
पर कमबख्त वोह भी चाहता है आप को...
-साहिल

हार की जीत..

रात हुई तो सुबह भी होगी, हर हसरत की एक इन्तेहाँ भी होगी,
अब हार जाना भले ही किस्मत में हो, अंत पर जीत उस अरमान की ही होगी!
शब्बा खैर दोस्तों!!

-साहिल

Sunday, September 12, 2010

अनजाने सपने!

झुका लो ये पलके, सपने नए बोने को.
सुबह कर रही है इंतज़ार, कुछ अनजाने अपने होने को...
शब्बा खैर दोस्तों!!

-साहिल

Saturday, September 11, 2010

अब के सावन!

एक किनारा था साहिल,
एक सहारा था साहिल,
एक प्यासा था साहिल,
एक आवारा था साहिल,
कल कल करती लहरों से आज भी क्यों टकराता था साहिल!
किसी का आरज़ू था साहिल,
किसी का आबरू था साहिल,
किसी का मंजिल था साहिल,
किसी का रास्ता था साहिल,
हर पल गुज़रते वक़्त का क्यों चस्म-ए-दीद गवाह था साहिल!!
साहिल से न पूछो दर्दे-ए-गम का सिला, गम के दीवारों से घीरा हुआ था साहिल!
ना कुरेदो उन ज़ख्मो को, दीवारों को हर पल तोड़ रहा था साहिल!
जल में रह कर भी प्यासा रह गया साहिल, भीग कर भी जल से जल गया था साहिल|
वक़्त मिले तो मोड़ देना उन नदियों को, अब के सावन वो छु ना पाए साहिल||

-साहिल

एक परिचय ऐसा भी!

कुछ पंक्तियाँ लिखे है, इन पंक्तियों के श्रोत का पता नहीं पर झरना कही से बह रहा है
इनमे से कुछ बड़े पुराने, कुछ बिलकुल नए!
कुछ उथले तो कुछ गहरे!
मन में अक्सर शब्दों के सैलाब आये और उन शब्दों से पंक्तियाँ बन गयी
लिख जाता हूँ जब साहिल बन जाता हूँ, रुक जाता हूँ जब इंसान बन जाता हूँ!
बहुत कुछ है कहने को पर क्यों में हर बार बच्चों से बहाने खोज लाता हूँ!!

-साहिल