Wednesday, May 18, 2011

न जाने ये क्या हो गया...



न जाने ये क्या हो गया,
खुली आखों से वो कब सो गया
अपनों के कितने करीब था कभी
न जाने किन रास्तो में वो खो गया
थक गयी है ये नज़रें उसकी या
मंजिल कही ओझल हो गया
न जाने ये क्या हो गया...

चल पड़ा आगे, न देखा मुड़ कर
रास्तों पर आशाएं सारे बो गया
मुद्दत से तलाश थी जिस मृगतृष्णा की
पहुचते ही न जाने वो कहा खो गया
न जाने ये क्या हो गया...

पल पल गुज़रती ज़िन्दगी उसकी
क्या वो इंसान पत्थर दिल हो गया
दम तोडा जिस मोड़ पर उसने
वो मोड़ मील का पत्थर हो गया
न जाने ये क्या हो गया
खुली आखों से वो कब सो गया!

- साहिल 

4 comments:

  1. पल पल गुज़रती ज़िन्दगी उसकी
    क्या वो इंसान पत्थर दिल हो गया
    bahut sundar

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  2. धन्यवाद् हरीश जी!

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  3. पल पल गुज़रती ज़िन्दगी उसकी
    क्या वो इंसान पत्थर दिल हो गया
    दम तोडा जिस मोड़ पर उसने
    वो मोड़ मील का पत्थर हो गया

    बहुत ही सुंदर पंक्तियां हैं...

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  4. धन्यवाद् वीणा जी!

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