राम सुमिरन सब करत है
ताप देख लोह तपत है
करम करे तो फल मिलत है
पड़े तपिष घटक पर
पूछे शिल्पकार न कोए
राज महल म लक्ष्मी बसत है
गरीब घर कछु न होए
भये मिथ्या हर कोए, सत्य भये न कोए
जूठी भात प्रभु के, मिले तो अमृत होए
ताप देख लोह तपत है
मार पड़े पट होए
मुद्रा बने तो सब चाहत है
हल बने न पूछे कोए
समझे मिथ्या हर कोए, सत्य परे होए
टूटी खाट किसान की याद करे न कोए
करम करे तो फल मिलत है
ऐसो कलयुग में होए
फल की इक्छा न करे तो
कलयुग में अर्जुन होए
करे मिथ्कर्म हर कोए, सत्कर्म करे न कोए
पिका गंगा नहा आये पर हंस कहा से होए
पड़े तपिष घटक पर
तो जल भी शीतल होए
पत्थर भी रतन बनत है
जो सहे न माटि होए
कहे मिथ्या हर कोए अब सत्य कहे न कोए
सत्य कह भारी पछताए अब कहे मिथ्य हर कोए
-साहिल
-साहिल
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