Monday, October 25, 2010

एक तजुर्बा ऐसा भी!

हुई सुबह और जहन में एक ख़्याल आया,
हुई आखें नम और दिल में एक सैलाब आया!
डूब गया साहिल न मिल पाया किनारा उसे
हसती आखों ने आज रोने का भी तजुर्बा पाया!

- साहिल 

Thursday, October 14, 2010

अब सत्य कहे न कोए!

राम सुमिरन सब करत है
पूछे शिल्पकार न कोए
राज महल म लक्ष्मी बसत है
गरीब घर कछु न होए
भये मिथ्या हर कोए, सत्य भये न कोए
जूठी भात प्रभु के, मिले तो अमृत होए

ताप देख लोह तपत है
मार पड़े पट होए 
मुद्रा बने तो सब चाहत है
हल बने न पूछे कोए
समझे मिथ्या हर कोए, सत्य परे होए
टूटी खाट किसान की याद करे न कोए

करम करे तो फल मिलत है
ऐसो कलयुग में होए
फल की इक्छा न करे तो
कलयुग में अर्जुन होए
करे मिथ्कर्म हर कोए, सत्कर्म करे न कोए
पिका गंगा नहा आये पर हंस कहा से होए

पड़े तपिष घटक पर
तो जल भी शीतल होए
पत्थर भी रतन बनत है
जो सहे न माटि होए
कहे मिथ्या हर कोए अब सत्य कहे न कोए
सत्य कह भारी पछताए अब कहे मिथ्य हर कोए
-साहिल 

Friday, October 1, 2010

मोहब्बत के कहकशां!

मोहब्बत के कहकशां में भटके हुए,
मंजिलो के दरमियाँ का फासला न पूछ..
साहिल गुज़र चुके है इन रास्तो से,
मुसाफिर तू अब उनका हाल न पूछ...

- साहिल