Wednesday, October 24, 2012

कहाँ मेरा राम है?



तीर से न तलवार से,
मरेगा न ये वार से,
कोई खोजो राम को,
खो गया जो जान के

बदल रहे कुछ लोग है,
रावण बनते हर रोज वे
कहाँ मेरा राम है?
जान कर जो अनजान है

बदला रावण हर युग में
बदल न पाया राम रे
आज चेहरे कई है रावण के
और एक बेचारा मेरा राम रे

कैसे किसका मैं वध करू
वोह भी यूँ कुछ हैरान है
सीता की इज्ज़त दावं पर नहीं
शायद वोह भी इसलिए शांत है

- साहिल 

Saturday, October 13, 2012

क्यों?



समंदर की उन लहरों को देखा
क्यों थकते नहीं वोह टूट कर भी
घड़ी की उन सुइयों को देखा
बिछड़ जाते है जो पल भर मिल कर भी
कर्म कहे या बदकिस्मती इनकी
क्यों जीतते नहीं ये जीत कर भी

आज हमने हमारी दूरियों को देखा
क्यों मनाते नहीं हम रूठ कर भी
कैसा है ये साथ हमारा तुम्हारा
क्यों बिखरे हुए है हर हम जुड़ कर भी
वक़्त को कोसे या किस्मत को अपनी
क्यों मिलते नहीं हम मिल कर भी..

- साहिल