शाख पे लटकते पत्ते की तरह
चंद लम्हों की सोहबत ही सही
टूट कर जुदा हो जायेंगे तुमसे
ग़म हमे अब इस बात का नहीं
दर्द गर हुआ अलग होने में
ये समझना मैं बेवफा ही सही
कभी वक़्त मिला तो बताएँगे
खलिश थी ज़ेहन में, सुकून की छाया नहीं
जाने कितने मौसम देखे
एक मौसम खिंसा का भी सही
कोई अब ये पयाम न पंहुचा दे उस तक
जुदा होकर उससे जुड़ा जुड़ा सा कही
चंद लम्हों की सोहबत ही सही
टूट कर जुदा हो जायेंगे तुमसे
ग़म हमे अब इस बात का नहीं
दर्द गर हुआ अलग होने में
ये समझना मैं बेवफा ही सही
कभी वक़्त मिला तो बताएँगे
खलिश थी ज़ेहन में, सुकून की छाया नहीं
जाने कितने मौसम देखे
एक मौसम खिंसा का भी सही
कोई अब ये पयाम न पंहुचा दे उस तक
जुदा होकर उससे जुड़ा जुड़ा सा कही
- साहिल
Judha hoke bhi tu usmai kahi baaki hai...
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