न जाने ये क्या हो गया,
खुली आखों से वो कब सो गया
अपनों के कितने करीब था कभी
न जाने किन रास्तो में वो खो गया
थक गयी है ये नज़रें उसकी या
मंजिल कही ओझल हो गया
न जाने ये क्या हो गया...
चल पड़ा आगे, न देखा मुड़ कर
रास्तों पर आशाएं सारे बो गया
मुद्दत से तलाश थी जिस मृगतृष्णा की
पहुचते ही न जाने वो कहा खो गया
न जाने ये क्या हो गया...
पल पल गुज़रती ज़िन्दगी उसकी
क्या वो इंसान पत्थर दिल हो गया
दम तोडा जिस मोड़ पर उसने
वो मोड़ मील का पत्थर हो गया
न जाने ये क्या हो गया
खुली आखों से वो कब सो गया!
खुली आखों से वो कब सो गया
अपनों के कितने करीब था कभी
न जाने किन रास्तो में वो खो गया
थक गयी है ये नज़रें उसकी या
मंजिल कही ओझल हो गया
न जाने ये क्या हो गया...
चल पड़ा आगे, न देखा मुड़ कर
रास्तों पर आशाएं सारे बो गया
मुद्दत से तलाश थी जिस मृगतृष्णा की
पहुचते ही न जाने वो कहा खो गया
न जाने ये क्या हो गया...
पल पल गुज़रती ज़िन्दगी उसकी
क्या वो इंसान पत्थर दिल हो गया
दम तोडा जिस मोड़ पर उसने
वो मोड़ मील का पत्थर हो गया
न जाने ये क्या हो गया
खुली आखों से वो कब सो गया!
- साहिल