Monday, February 6, 2012

ये शहर भी कितना अजीब है!



ये शहर भी कितना अजीब है,
कोई कातिल तो कोई बकील है.

मेरा नाम यहाँ कही खो गया,
मेरा अक्स ही मेरे करीब है.

मैं किससे अपना दुखड़ा कहू,
दूर मुझसे मेरा रकीब है.

तू जो पास हो तो है सुकून,
तेरी छाव में मेरा नसीब है.

न भूला सका जो चला गया,
किस्से फ़िक्र है जो करीब है.

यहाँ कौन है किससे मशवरा करू,
सब जान कर भी यहाँ सब अनभिज्ञ है.

- साहिल